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वे नेमी-धरमी हैं / रंजना जायसवाल

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वे
बड़े नेमी-धरमी हैं
चींटी नहीं मारते
जला देते हैं मगर
जिन्दा स्त्री
करते हैं बलात्कार
पूरे पेट की स्त्री से
फाड़ देते हैं उसकी कोख
त्रिशूल पे टांग लेते हैं उसके
अजन्मे भ्रूण को
स्त्री को छोड़कर
कण-कण में
ईश्वर का निवास मानते हैं
स्त्री का दुःख देखकर
नहीं पनियाती उनकी आँखें
पनिया जाता है उनका मुँह
स्त्री-देह को देखकर