सारी दुनिया
जब जा रही होती है
अपने बसेरों की तरफ
निकलते हैं अपने बसेरों से
उल्लू और चमगादड़
रात का सच देखने
वह सच
जिसे नहीं लिख सकते वे
नहीं कह सकते किसी से
खेद है
कौन समझेगा
उनकी भाषा?
सारी दुनिया
जब जा रही होती है
अपने बसेरों की तरफ
निकलते हैं अपने बसेरों से
उल्लू और चमगादड़
रात का सच देखने
वह सच
जिसे नहीं लिख सकते वे
नहीं कह सकते किसी से
खेद है
कौन समझेगा
उनकी भाषा?