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यह भागता शहर / रंजना जायसवाल

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यह भागता शहर
वक्त का टोटा इतना यहाँ
कि कहता है प्रेमिका से प्रेमी -
"बस दस मिनट
कर लो... .करना है जो”
फालतू-सा शगल है प्रेम यहाँ
उबाल है
उबलते दिख जाते हैं जोड़े
पार्क
सिनेमाहाल जैसी जगहों पर भी
यह सुंदर जगमगाता
रात-दिन जागता
जिन्दगी और मौत लिए
चलता है साथ
क्रिया के बिना वाक्य हो जैसे
गति बिना जिंदगी यहाँ
विराम नहीं
ठहरने और सुस्ताने की जगहें भी
मानकर चलते हैं सभी
"अवसर नहीं खटखटाएगा फिर द्वार”
जिन्दा रह सकता है वही जो
भाग सकता है तेज
धीमी गति वाले पिछड़े
या फिर कुचले मिलते हैं
रफ्तार-चक्र के नीचे
यहाँ रोमाँच है रोमाँस नहीं
देह है... आत्मा नहीं
सब कुछ कृत्रिम
मशीन से संचालित
पेड़-पौधे,फल-फूल
पशु-पक्षी सब
यहाँ तक कि आदमी भी
मुश्किल है पहचान असल की
नकल ज्यादा वास्तविक लगता है यहाँ
माया नगरी है यह शहर
खींचता है सबको
जाने कहाँ-कहाँ से
किस-किस तृष्णा में
चले आ रहे हैं लोग यहाँ
अनवरत
अपनी जड़ों से उखड़कर
या उखाड़कर
अंधी दौड़ में हिस्सेदार बनने
डरती हूँ कहीं हश्र न हो इनका
लोक-कथा के उस नायक-सा
जो और... .और अधिक के लोभ में
दौड़ता चला जाता है
और लौट नहीं पाता
अपने ठिकाने पर