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खड़े अकेले पापा जी / सुरजीत मान जलईया सिंह

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सब कुछ अपना हमें सौंपकर
खड़े अकेले पापा जी

थके हुये चहरे से हमने
नूर झलकता देखा है
खामोशी में इन आँखों से
नीर छलकता देखा है
ख्वाहिश मेरी पूरी करने
चले अकेले पापा जी

कदम कदम पर साथ चले
फिर कदम कदम पर हार गये
मुझको खुश रखने की जिद में
अपनी खुशियाँ मार गये
पीडाओं की ज्वाला धधकी
जले अकेले पापा जी

टूट गये हैं वो अन्दर से
लेकिन हैं खामोश बहुत
मुझे भरम में रखते हैं वो
दिखलाते हैं जोश बहुत
अपने गम से तन्हाँ तन्हाँ
लड़े अकेले पापा जी

सब कुछ अपना हमें सौंपकर
खड़े अकेले पापा जी…