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आकाश / अविनाश श्रेष्ठ

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जब पनि यन्त्रणाहरुमाझ घेरिएर
भएको छु हताश–हताश;
एउटी कुशल प्रेयशी झैँ
सान्त्वना दिन
आएकी छे आँखाभरि आकाश ।