भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंगिका फेकड़ा / भाग - 8

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:01, 9 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञात |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatAngikaRachna}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


चलोॅ हे हिरनी माय फूल तोड़ै लेॅ
फूलोॅ के गाछ तर ऐल्हौं जमाय
बेटी केॅ लेल्हखौं डोली चढ़ाय
ज्यौं-ज्यौं डोलिया डुलकल जाय
त्यौं-त्यौं बेटी हकरल जाय
बोॅर बैठलोॅ बरोॅ तर
कनियाँय बैठली पीपरोॅ तर
बरोॅ केॅ लागलै दाँती
कनियाँय धूनेॅ छाती।


कनियाँय मनियाँय झिंगाझोर
कनयाँय माय केॅ लेॅ गेल चोर
दौड़ोॅ हो शहर के लोग।


झरिया ऐलै बुनरिया ऐलै
करका मेघ लगैलेॅ ऐलै
डाला कुण्डा घोॅर करोॅ
बेटी केॅ विदा करोॅ।


औठी-पौठी लौका
बीच में गू खौका।


पांड़े पड़ोकी चुटिया में तेल
पांड़े के धिया-पुता खेलेॅ गुलेल
पांडे़ ढब-ढब-ढब।


यद्दू बेचेॅ कद्दू, बंगाली बेचेॅ पान
यद्दू के एक बेटा, सेहो गाड़ीमान
यद्दू दूर गेलेॅ हो।


अथरो-बथरो सीमा गेली सीम तोड़े
नीमा गेली नीन तोड़े, दा बूढ़ी भात
अभी गोबरे हाथ।


ऊबु पान फूल पत्ता
गुलाबी रंग कच्चा
कटोरी में के आगिन
बुझाय देॅ मोरी भौजी।


ओ ना मा सी धं
गुरूजी पढ़ंग
चटिया लंग
बाजे मृदंग।


तार काटूँ, तनकुन काटूँ
काटूँ रे बनखज्जा
हाथी पर से घुंघर बोले
टन देॅ केॅ राजा
राजा के रजोली बेटी
भैया के दुपट्टा
हिच्च मारौं, घिच्च मारौं
चीचे हेनोॅ बच्चा।