भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शिक्षा परियोजना / मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:28, 10 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी' |अनुवाद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऐलै शिक्षा परियोजना, सुनऽ भैया हो
सुनऽ भैया हो, सुनऽ भैया हो-ऐलै.
ई शिक्षा के दीप जलावऽ, दूर करऽ अन्हरिया
ऊँच-नीच, टीलऽ टाकर के, सर करऽ डगरिया
जात-पात आरो छुआछूत के, रहतै नै कोय ठिकाना। सुनऽ...
बच्चा-बच्ची भेद मिटावै, सबमें ज्ञान जगावै
एके छेकै ईश्वर प्राणी, सबके साथ मिलावै
भेद-भाव, लीपा-पोती के नै मानै दीवाना। सुनऽ...
मंदिर-मस्जिद, गिरिजा गुरूद्वारा, एके पाठ पढ़ावै
नमाज-कीर्त्तन, शंख भजन, नै केकर्हौ ओझरावै
कलतक के ऊ रंगलऽ, लागै अबेॅ पुराना। सुनऽ...
नै केकरहौं सें भाग्य पढावऽ, नै कपाड़ दिखाव
आपनऽ बल पौरूष के आगू, अपने हाथ बढ़ावऽ
करम-फल आरो जनम-मरन के, झूठे लगै बहाना। सुनऽ...
चान-सुरज के ई किरणियाँ, नै केकर्हौं सें दूर
दुख-दर्द आरो भेद-खेद में, सबके बाँटै नूर
नदी-नार गंगा के नीरें, की मानै ठिकाना। सुनऽ...
सब मिली अपनऽ देश बढ़ावऽ नै कोइये टकरावऽ
मिली-जुली चलऽ-चलावऽ, सबके साथ निभावऽ
टीका-टिप्पणी लेखा-जोखा के, कत्तेॅ रहतै लहना। सुनऽ...
सब दिन कि ई घुसपैठी, केकरऽ कहाँ चलै छै
अपनऽ गाछी, अपनऽ करनी, सब दिन देह फरै छै
जेकरा देहें काँटे-काँटऽ, आरो शीश झूकाना। सुनऽ...
नै केकरहौ कोइये चूसी केॅ, ई रंग धुंध बढ़ावऽ
ई मायाबी सुरसा केॅ, शीशा नै रूप मढ़ावऽ
एक दिन सब के अंत छै ‘मथुरा, लागै सभ्भे बिराना। सुनऽ...