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वैर-फूट के लक्षण / मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी'

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गाछी-गाछी बैर फरै छै, खेते-खेते फूट रे
देहें-देहे लूट करै छै, रस्ते-रस्ता छूट रे॥
कोय हपसै छै, कोय कपसै छै, कोय पियै छै घूंट रे
लाल परी पर लाल लड़ावै, पकड़ी-पकड़ी खूंट रे॥
कखनू पुरबा, कखनू पछिया, हवा बहै बेछूट रे
नै जानौ हौ कौनी-कौनी, करवट बदलै ऊँट रे॥
रंग बदलू, कोय दल बदलू छै, मौसम के रंगरूट रे
हद के नै छै सीमा केकरो, जत्ते लूटै फूट रे॥
आपने-आपनऽ घेराबंदी, डैनिया के करतूत रे
मंतर मारी बच्चा मारै, डालै सगठें फूट रे॥गाछी...