भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सासू घेघोॅ पतौहे अनसोॅ / मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी'
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:50, 10 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी' |अनुवाद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सासू धेवोॅ पतौहे अनसोॅ
वरोॅ केॅ मानोॅ बिगड़लै भानसोॅ।
सासू बातें लावै लट्ठा
ननदें करै हरदमें ठट्ठा
ससुरे बातें दै रे कनसोॅ।
बातें-बातें रगड़े राड़ा
रोजै होवै झगड़े-झगड़ा
उटक्हें पैंची गेलै भानसोॅ।
झग्ड़हे घर जावै छै टूटी
रंग प्रेम केॅ जावै छै छूटी
घोॅर फूटै छै देल्हें कनसोॅ।
नून-तेल नै खोंट लगावोॅ
बात बनाय न´् चोट लगावोॅ
घोॅर जी हँसे हँसे छ भानसोॅ॥