भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मईया अब तुम ही समझाओ / अभिषेक कुमार अम्बर
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:20, 12 जुलाई 2017 का अवतरण
मईया अब तुम ही समझाओ
मन में प्रश्न अखरता है
रात होते ही चंदा क्यों
मेरा पीछा करता है।
मैं जो चलूं तो चलने लगता
रुक जाऊं तो रुक जाता है
मैं जो हंसू तो हंसने लगता
शरमाऊं तो शरमाता है।
मईया बोली सुन रे बेटा,
इसमें नहीं दुराहा है
वैसे भी चंदा तो बेटा
लगता तेरा मामा है।
जैसे भौरा रस की खातिर
फूलों पर मंडराता है
अंबर अवनी को बांहों में
भरने को हाथ बढ़ाता है।
वैसे ही चंदा भी तुझपर
अपना प्यार लुटाता है
इसलिए वह हर पल
तेरे पीछे-पीछे आता है।