भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़िंदगी मोतबर तलाशे है / दीपक शर्मा 'दीप'
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:13, 12 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीपक शर्मा 'दीप' |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ज़िंदगी मो'तबर तलाशे है,
'खंडहर में गुहर तलाशे है?'
देख वो ऊबने लगा मुझसे,
और कोई सफ़र तलाशे है
दाग़ को दे गया मिरी सूरत,
'सूरते-नौ शज़र' तलाशे है?
एक मैं पा के बेच आया हूँ,
एक तू दर-बदर तलाशे है
'दीप' जैसे कई लुटे उस से,
वो अभी नामवर तलाशे है