गो ग़ज़ब शाइर हुआ हूँ / दीपक शर्मा 'दीप'

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गो ग़ज़ब शाइर हुआ हूँ
रेहड़ियों पे बिक रहा हूँ

 एक ठेले पर बिछा कर
रो ज़ ख़ुद-को बेचता हूँ

 कौन पहचाने मुझे अब
अब कहाँ मैं काम का हूँ

  शायरी माशूक़ है और
 बस इसी को सोचता हूँ

 हाशिये को कोसता था
 हाशिये पर आ चुका हूँ

इक शराबी कह रहा था
 मैं मोहब्बत का ख़ुदा हूँ

बस मुझे बरबाद कर दो
 अब तो मैं भी चाहता हूँ

किस गली में आ गया मैं
हाय कैसा लिसलिसा हूँ

मार डाला जब से तुमने
'दीप' तब से चह चहा हूँ

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