भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गोट गोट तारा / सुभाष भ्रमर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:46, 14 जुलाई 2017 का अवतरण
गोट-गोट तारा, रात चांदनी, कली हँसै छै बेली के
फूल-फूल में चर्चा होय छै, उड़लै गन्ध चमेली के
दिप-दिप उजरी, कोमल पतरी
हरी चुनरिया मलमल के
रात-रात भर जगली सजली
ओस के अंगिया मखमल के
कमल कली लै छै अँगड़ाई
खोता में जगलो बुलबुल छै
आम गाछ पर कोयल जगलो
तितली जगली बुलबुल छै
सब आपस में बतियाबै छै, पीछा करॅ सहेली के!
फूल-फूल में चर्चा होय छै, उड़लै गन्ध चमेली के!
गेली पगला गली मोड़ पर
राहगीर सें टकरैली
भौंरा भेटलै वही अचानक
आंख झुकाय क शरमैली,
बार-बार सरकै छै अँचरा बिलकुल नयी नवेली के!
फूल-फूल में चर्चा होय छै, उड़लै गन्ध चमेली के!