Last modified on 29 जून 2008, at 09:23

एक बार ही सही / अनवर ईरज

Sumitkumar kataria (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 09:23, 29 जून 2008 का अवतरण (हिज्जे)

वो

बार-बार

बोल रहा है

और ज़हर उगल रहा है


वो

बार-बार

बोल रहा है

ग़लत और झूठ

बोल रहा है


क्या हम इतने

ग़ैर जानिबदार

सैक्यूलर

और मस्लेहात पसंद हो गए हैं

कि बार-बार नहीं तो कम से कम

हमें एक बार ही सही

सच तो बोलना चाहिए