भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पिता का मन / स्मिता सिन्हा
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:26, 23 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्मिता सिन्हा |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मैं लिख देती हूँ
अपने घर की नींव
घर की ऊंची छत
और सारी मज़बूत दीवारें
अपनी गली अपना मोहल्ला
और अपने घर का पता
मैं लिख देती हूँ
चूल्हे में धधकती आंच
पकती रोटियाँ
और तृप्त होती भूख
मैं लिख देती हूँ
एक सुकून भरी नींद
और कुछ मीठे सपने
मैं लिख देती हूँ
आँगन का वो विशाल दरख्त
और पत्ती पत्ती छांव
मैं लिख देती हूँ
सागर,धरती,आकाश
और पहाड़ सा एक जीवन
बस नहीं लिख पाती तो
चेहरे की कुछ झुर्रियाँ
खुरदरी हथेलियाँ
और थकते लड़खड़ाते क़दम
हाँ कभी भी नहीं लिख पाती मैं
अपने पिता का मन...