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पतझड़ समय में / स्वाति मेलकानी
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यथार्थ के धरातल पर
बिखरते जीवन को
पिरोना
समय की माला में
मोतियों की तरह
कैसे होगा उदासीन
या आत्ममुग्ध
सतही क्षणों के बीच।
चिंतन के सूत
और
कर्म की तकली में काता
सरोकार का मजबूत धागा
कहाँ मिलेगा?...
संवेदना की
कपास का पेड़
सूख रहा है
पतझड़ समय के
उष्ण शीत में।