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उस दिन शायद... / स्वाति मेलकानी

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     अपने ख्वाबों में उभरते
     अक्स में झाँककर
     देखूँगी
      अपने भीतर तुम्हारा होना
     और
     गर्म हवाओं में
     घुलती नमी से
     नापूँगी तुम्हारी नजदीकियाँ।
     महसूस करूँगी तुमसे दूर होना
     जब जाती रात के
     कदमों की आहट सुनकर
     चांद छिप जाएगा
     न जाने कहाँ...
     जिस दिन
     पाले की सैकड़ों परतें
     चढ़ जाएँगी सूरज पर
     जैसे कोई मौसम आकर
     ठहर गया हो मेरे मन में।
     जिस दिन सुबह जागकर
     तुम पाओगे
     मेरे सिरहाने में बूँद ओस की
     उस दिन शायद
     मैं भी प्यार करूँगी तुमसे।