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रात एक मील का पत्थर है / लवली गोस्वामी

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बहुत जान कर मैंने यह जाना है
जीवन का मतलब घाव पाना है

बहुत देखकर देखती हूँ
तो मन मरे परिंदे की तरह
टहनियों के कुचक्र में फंसा
बेजान लटका नज़र आता है

रात एक मील का पत्थर है
जिस पर बैठा मन दोहरा रहा है तुम्हारा नाम
भूले हुए अधूरे जादू की तरह

सदियों में एक रात ऐसी आती है
जब सब तारे रात की चादर से फिसलकर
ज़मींन पर गिर जाते हैं

फिसले हुए ये तारे देर रात
झींगुरों की लय पर रौशनी की बूंदों की तरह
जुगनू बनकर टिमटिमाते हैं

सदियों में एक रात ऐसी आती है
जब समुद्र गर्जना के स्वर कलश में रखकर
मिट्टी में गाड़ देता है

सदियों बाद एक रात
आवाजें धरोहर हो जाती हैं
ध्वनियाँ स्वाद पैदा करती हैं
कलरव आनन्द मनाते हैं
स्वर मनुहार करते हैं

सदियों के बाद एक रात
भुलायी गयी सब कहानियाँ
झुण्ड बनाकर चांदनी में बिछी ओस से
केश धोने निकलती है

सदियों में एक रात ऐसी आती है
जब तुम्हारा आश्वस्ति देने को छूना भी
दुलार के मारे सहा नहीं जाता

सदियों बाद आयी इस रात में प्रेम
नवजात शिशु के केशों से भी अधिक कोमल है

आज सदियों बाद
बातें हामी भरती है
पुकारें उम्मीद जगाती है
हुँकारी गुजारिशें करती हैं

सदियों बाद आयी इस रात में
अस्थि-आँते सब देह की अलगनी से
गीले कपडे की तरह गिर गई हैं

तुम आओ और मेरी अंतड़ियों की जगह
इन्द्रधनुष की सुतरियों के लच्छे भर दो

आओ और देह में अस्थियों की जगह
गीतों की सुनहरी पंक्तियाँ रख दो

आँधियों के बाद टूटी टहनियों की दहाड़ें
मरी चिड़ियों के पंखों की फड़फड़ाहटों से भरीं हैं

कलियाँ पौधों की बंद मुठ्ठियाँ हैं
रौशनी नहीं मानती, वह रोज़ आती है
एक दिन कलियाँ बंद मुठ्ठी खोलकर
रौशनी से हाथ मिलाती है

इन दिनों खुद को सह नहीं पा रही हूँ मैं
आओ और मुझे सहने लायक बना दो

आओ कि मैं जानती हूँ
सुन लिया जाना
आवाजों की मृत्यु नहीं है

तुम भी तो जानते हो
आँखें दुखाती चमचमाती रौशनी में झुर्रियाँ
सिर्फ हिलोरें मारता पानी पैदा कर सकता है।