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साबनी दोहा / मनीष कुमार गुंज

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सावन में जगमग करै, नयकी गंगा घाट
घाटोॅ से देवघर तक, सजलै सुन्दर हाट।
  
गंगा उमड़ल जाय छै, घसना गिरै धड़ाम
भोला केॅ बतलाय लेॅ, जैबै बाबाधाम।

चोर सिपाही भीड़ मेॅ, चौकस पहरेदार
बोलो-बम के नाम पर, सबके बेड़ा पार।

रौदा बरसा खातरें, सरकारी तिरपाल
काँवरियाँ के झुण्ड में, किसिम-किसिम के चाल।

गरम-गरम भोजन मिलै, जगह-जगह पर चाय
कोय फलकारी जाय छै, कोय मनमानि खाय।

शौचालय सगरै मिलै, जत्ते मोन नहाय
सबपर बाबा एकरंग, हरदम रहै सहाय।

दूर देश के भक्त सब, नाचै-गाबै गीत
तीन दिनों में देवघर, रस्ता लै छै जीत।