भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सब कुछ सलीब पर / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:52, 3 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध प्रसाद विमल |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
उसने कहा था कि मैं सुबह तक
जरुर लौट आऊँगा
पर वह लौटता कैसे
जिसकी जिन्दगी में
कभी सुबह हुई ही नहीं
लेकिन
वह हारा नहीं है
वह जरुर लौटेगा
और
इस बार
जब वह लौटेगा
तो उसके हाथ में
एक नया सूरज होगा