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सब कुछ सलीब पर / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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मैं देख रहा हूँ-
द्रोपदी/फिर कीचक की सुलगती आँखों की
शिकार हो गई है/वह चीख रही है
कि भीम को बुला रही है
इधर उत्तरा का विलाप है
चक्रव्यूह में फंसे अभिमन्यु के लिए
जो सप्त महारथियों से घिरा खून से लथपथ है
और जिसके हाथ में अन्याय के विरुद्ध
लड़ने के नाम पर/अब बच गया है बस
एक टूटा हुआ पहिया
आखिर कब तक टिकेगा सुभद्रा कुमार
द्रोणाचार्य ने उसे निरस्त्र करने या कि उसकी हत्या की
तमाम साजिशों को दुरुस्त कर रखा है
लेकिन नियोजित कुचक्रों के विरुद्ध
पार्थसुत लड़ रहा है अकेला ही
युगों के अन्याय-अधर्म के खिलाफ
उसे उसकी कुछ भी परवाह नहीं
कि जिनसे अपेक्षा की थी सहयोग की
वे भी युद्धस्थल के किनारे-किनारे
तमाशबीन की तरह खड़े हैं
आसन्न मृत्यु से भयभीत
शीलीभूत हुई सुभद्रा/मूक हो गयी है
गिद्धों की छाया में
सियार और श्वानों का शोर जारी है