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नदी / तुम्हारे लिए / मधुप मोहता

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तुम उफनती नदी की तरह आ गईं
मुझको सपनों मंे आकर बहला गईं,
मैं बहकता रहा, साथ बहता रहा
जिस तरह आईं तुम उस तरह ही गईं,
मैं किनारे-किनारे चला दूर तक
पर मेरी प्यास से वास्ता मत रखो
मैं जहाँ तक बहा बस वहीं ठीक था
उससे आगे न आया वहीं ठीक था
रेत में तुमने जो कुछ इबारत लिखीं
उसको पढ़ता हूँ तो याद आता है फिर
तुम नदी हो, बहोगी, रहोगी नदी
मैं किनारा हूँ कोई समंदर नहीं।