भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नदी / तुम्हारे लिए / मधुप मोहता

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:42, 9 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधुप मोहता |अनुवादक= |संग्रह=तुम्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम उफनती नदी की तरह आ गईं
मुझको सपनों मंे आकर बहला गईं,
मैं बहकता रहा, साथ बहता रहा
जिस तरह आईं तुम उस तरह ही गईं,
मैं किनारे-किनारे चला दूर तक
पर मेरी प्यास से वास्ता मत रखो
मैं जहाँ तक बहा बस वहीं ठीक था
उससे आगे न आया वहीं ठीक था
रेत में तुमने जो कुछ इबारत लिखीं
उसको पढ़ता हूँ तो याद आता है फिर
तुम नदी हो, बहोगी, रहोगी नदी
मैं किनारा हूँ कोई समंदर नहीं।