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हार / तुम्हारे लिए, बस / मधुप मोहता

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चलो
अब मानता हूँ हार
बहस में क्या रखा है
महज़ कुछ लफ़्ज़ जो मेरे-तुम्हारे बीच कुछ मानी
नहीं रखते
हाँ ख़ूबसूरत हैं,
मगर जो बात तुम आँखों से कहती हो
वो दिल में जब उतरती हैं
तो ख़ामोशी मेरी यूँ गुनगुनाती है,
कि दिल कहता तुमसे हारने में जीत है
चलो अब छोड़ दो सब अनकहा
देखा-सुना अब भूल जाओ ना
किसी सपने की बाँहांे में
सिमट जाओ,
मेरी यादों में छाओ
ज़हन में उतर आओ
बहो, मुझको बहाओ,
चलों मैं हार जाता हूँ
मुझे अब जीत जाओ
आओ
अब मुझमें समाओ।