भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उफ़क / तुम्हारे लिए, बस / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:29, 10 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधुप मोहता |अनुवादक= |संग्रह=तुम्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
उफ़क के पार उजाले के किनारे के परे
जहाँ तू नहीं और तेरा तसव्वुर भी नहीं,
कोई ख़ुशबू, कोई आवाज़, कोई रंग नहीं
कोई अहसास, कोई दर्द, कोई रंज नहीं,
कुछ तो है जो दिल में उतर आता है
सिर्फ़ तू ही, बस तू ही नज़र आता है।