भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वही मुझको नज़रअंदाज़ करते हैं / सुभाष पाठक 'ज़िया'
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:57, 11 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुभाष पाठक 'ज़िया' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
वही हमको नज़र अंदाज़ करते हैं
जो कहते थे कि तुम पर नाज़ करते हैं
दुआ है ख़ैर हो अंजाम इस दिल का
कि अब हम इश्क़ का आग़ाज़ करते हैं
सुनो तन्हाइयों ज़ाहिर न करना तुम
कि अब से हम तुम्हें हमराज़ करते हैं
वो लम्हे ख़ामुशी मंसूब है जिनसे
वही दिल में बहुत आवाज़ करते हैं
हमारे पर कतरने से न होगा कुछ
हमारे हौसले परवाज़ करते हैं
भरोसा उठ गया है ऐ'ज़िया'सबसे
सो अब हम ख़ुद को ही दमसाज़ करते हैं