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है कितनी तेज़ मेरे ग़मनवाज़ / साग़र पालमपुरी

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है कितनी तेज़ मेरे ग़मनवाज़ मन की आँच

हो जिस तरह किसी तपते हुए गगन की आँच


जहाँ से कूच करूँ तो यही तमन्ना है

मेरी चिता को जलाए ग़म—ए—वतन की आँच


कहाँ से आए ग़ज़ल में सुरूर—ओ—सोज़ो—गुदाज़?

हुई है माँद चराग़—ए—शऊर—ए—फ़न की आँच


उदास रूहों में जीने की आरज़ू भर दे

लतीफ़ इतनी है ‘साग़र’! मेरे सुख़न की आँच