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साथ निभाया तारों ने / प्रीति समकित सुराना

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रातों को बुनता रहता मन कुछ सपने अंधियारो में,
मेरी तनहाई में अकसर साथ निभाया तारों ने...

भीड़ बहुत है इस दुनिया में मन मेरा घबराता है,
सिमटा सा रहता है खुद में आहट से डर जाता है
हौले हौले से समझाया मन को रोज इशारों में,
मेरी तनहाई में अकसर साथ निभाया तारों ने...
रातों को बुनता रहता मन कुछ सपने अंधियारो में...

दूर तलक तनहा चलकर मैं जब मंजिल की ओर बढ़ी,
ठोकर खाई थी पग पग में तब इक इक सोपान चढ़ी,
पर्वत घाटी नदियाँ बनकर रोकी डगर नज़ारों ने,
मेरी तनहाई में अकसर साथ निभाया तारों ने...
रातों को बुनता रहता मन कुछ सपने अंधियारो में...

अटल इरादे रखने से ही सपने सफल नहीं होते,
कर्म कठिन करने पड़ते है हँसकर या रोते रोते,
जिसके सब सपने पूरे हो वो हो एक हज़ारों में,
मेरी तनहाई में अकसर साथ निभाया तारों ने,
रातों को बुनता रहता मन कुछ सपने अंधियारो में...