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जब हवाएँ गीत होंगीं / कुमार रवींद्र

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जब हवाएँ गीत होंगीं
तब न
उनसे पूछना कि यह हुआ क्या
 
वे सुगंधों के सरोवर में
नहाकर आईं होंगी
तब न होगा वक्त यह
जो हुआ ढोंगी
 
दिखा तुमको है नहीं
उस मोड़ पर
आकाश में उड़ता सुआ क्या
 
होंठ से छूकर
उन्हें ऋतुदान करना
तभी उमगेगा
अचानक नेह-झरना
 
सुनी तुमने नहीं
भीतर गूँजती
ऋतुराज की मीठी दुआ क्या
 
नहीं रोको फूल को
जो खिल रहा है
प्रश्न बाँचो
जो अभी ऋतु ने कहा है
 
दिन चिता के रहे इतने
आँख में
अब भी टिका उनका धुआँ क्या