Last modified on 29 अक्टूबर 2017, at 21:53

चलो घर की ओर, सजनी / कुमार रवींद्र

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:53, 29 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चलो घर की ओर
सजनी
चाँद शायद हो वहाँ छत पर
 
हम यहाँ
इस घुप अँधेरे में खड़े हैं
दूर तक
टूटे समय के आँकड़े हैं
 
टेरता है
हमें रह-रह
आँगने के देवता का स्वर
 
साथ हमने
चाँदनी का एक बिरवा था लगाया
रहा घर पर
उसी का जादुई साया
 
वहीं से तो
अभी, सजनी
सगुनपंछी गया उड़कर
 
झरी जिस दिन
धूप कनखी से तुम्हारी
उसी दिन थी
उगी कोंपल भी कुँवारी
 
मिलेंगे घर में
हमें हँसते
पुराने ढाई आखर