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याद आओगी बहुत तुम / कुमार रवींद्र
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याद आओगी
बहुत तुम
आज जब सागर उमड़कर आयेगा
हाँ, सखी, यह रात पूनो की
निरर्थक है नहीं
इन हवाओं के सिरे पर
बज रही वंशी कहीं
चाँद ने जो
गीत सिरजा है उधर पगडंडियों पर
वही सागर गायेगा
इस अलौकिक पर्व-वेला में
समय ठिठका हुआ
पूछता है -
नेह से आकाश को किसने छुआ
तुम नहीं हो
तोड़ बेला
पास के इन टापुओं पर अभी सागर छायेगा
रात के एकांत में
हम मौन बैठे सुन रहे
एक मीठी धुन
सितारे जो हवा में बुन रहे
उग रहा है चाँद भीतर
हाँ, तुम्हीं तो -
सुनो, यह सागर यहीं रह जायेगा