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सखी, रिमझिम राग बरसा / कुमार रवींद्र

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फाग बरसा
रात-भर कल
सखी, रिमझिम राग बरसा
 
हवा की मीठी छुवन से
देह बहकी
आयने में छवि दिखी
हर साँस महकी
 
फाग बरसा
खुश हुआ सूरज
नशीली आग बरसा
 
पत्तियों में धूप ने
है चित्र आँके
थके-हारे स्वप्न भी
हो गये बाँके
 
फाग बरसा
नदी ने
चट्टान धोई झाग-बरसा
 
चलो देखें ओस-पीती
तितलियों को
नदी-जल से खेलते
जलपाखियों को
 
फाग बरसा
उधर देखो
द्वीप पर अनुराग बरसा