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गई-रात की घटनाओं ने / कुमार रवींद्र
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हम क्या करते
गई-रात की घटनाओं ने गीत रचे
कनखी-कनखी तुमने परसा
देह हुई मिठबोली
किसी अदेही देवा ने
साँसों में रची रंगोली
छुवन फूल की
थी वह मारक - हम भी नहीं बचे
बरखा हुई नेह की भीतर
ठूँठ स्वप्न अँखुआये
अंगों की देहरी पर बैठे
रितु-पंछी बौराये
हुए रसीले
जो हवाओं के झोंके रहे तचे
वह सपना था या कि ज्वार था
नेह-समन्दर का
कौंध भरी बिजुरी की
दमका धनुआ इन्दर का
पुतरा मन का
उसमें ही हैं सूरज-चाँद खँचे