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शपथ तुम्हारी कनखी की / कुमार रवींद्र
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सजनी, मानो
रास हुई कल देह हमारी
शपथ तुम्हारी कनखी की
बरसों पहले तुमने सिरजा था जो सूरज
वही बना था मीठी इच्छाओं का अचरज
अंग-अंग में
उड़न जगी थी
पंछी सूरजपंखी की
एक नया इतिहास हुआ था साँसों का
गूँज उठा था झुरमुट, सजनी, बाँसों का
लगी हमें थी
वंशीधुन-सी
अदा कुँवारी अनखी की