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राम-लीला गान / 3 / भिखारी ठाकुर

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श्री रामचन्द्र को चारों भाइयों सहित झूले में रखकर झुलाया जाना है। उसमें सामान्य लोगों के साथ-साथ विशिष्ट लोग भी सम्मिलित हैं।

झूला पर झूलत चारो भइया।टेक।
नर-नारी निज टोला-परोसिन, प्रेम सहित झुलवइया। झूला पर...
कजरी गावत, धूम मचावत, अवधपुरी रहवइया। झूला पर...
बाहर के, घरबासी-उदासी, बिप्र बेद पढ़वइया। झूला पर...
भूत, भविष्य, वर्तमान काल के, सकल भेद बतवइया। झूला पर...
बंदी जनगन अच्छर गनिकर, छंद-कवित्त कहवइया। झूला पर...
ठाट बना कर, आसन लगा कर, साजन के बजवइया। झूला पर...
हरेक भासा में राग सुनावत, एक-से-एक गवइया। झूला पर...
खुरदक डंफ, नगारा बाजत, पिहिकत बा सहनइया। झूला पर...
राजा दसरथ, रनिवास समूचा, आनन्द उर बहुतइया। झूला पर...
नाई ‘भिखारी’ चरनन सिर नावत, सावन सुदी समइया। झूला पर...

वार्त्तिका:

चार जाना ब्राह्मण देवता अपना में सलाह कइल लोग कि हमनी का चारो बाहर चलके कमाई स। चारो जाना आपन ब्राह्मण के रूप बना लेल लोग। कांख पर पोथी-पतरा जात लेल। घर के बाहर चल देल। जब कुछ दूर लोग गइल, त राजा के दरबार मिलल। चारो जाना राज साहेब के लगे गइल। राजा साहेब चारो जाना के देखके बहुत खुश भइलन। राजा साहेब चारो ब्राह्मण देवता से कहलीं-‘रवां लोग कहँवाँ चलल बानी?’ चारो ब्राह्मण देवता लोग कहल-‘हमनी का आपन बाल-बच्चा के परबरिसी खातिर रवा लगे आइल बानी।’ राजा साहेब कहलीं-‘एगो ठाकुरवाड़ी में चारो आदमी जा के रामायण के पाठ करीं।’ चारो ब्राह्मण देवता ठाकुरवाड़ी में जा के चार कोना बइठ गइल लोग-आपन-आपन पाठ शुरू कर देल।

पहला ब्राह्मण: ‘राजा पूछिहन, त का कहब?’
दोसरा ब्राह्मण: देवता सोचलन जे एक त राजा के दरबार दोसरे भगवान के दरबार। ई झूठ कबले चली।
दोसर ब्राह्मण: देवता पाठ कइलन-‘तेरी गति से मेरी गति?’
तीसर जाना पाठ कइलन-‘जे ई अपत कब ले निबही?’
चौथ जाना पाठ शुरू कइलन-‘जबले निबहीं, तबले निबहीं?’

एक दिन राज-रानी दूनो बेकती ढुका लाग के पाठ सुने लागल। राजा रानी से कहलन-‘हे रानी, चारो ब्राह्मण के बिहान जेल में देब।’

रानी साहब कहली-‘हमरा से पूछके?’
बिहान भइल रानी साहिबा राजा से कहलीं-‘चारों आदमी के काहे जेल में देहल जाई?’
राजा साहेब कहलन-‘झूठ पाठ कइला से।’
रानी साहेब कहलीं-‘पाठ झूठ ना साँच ह।’
राजा साहेब कहलन-‘जे कइसे?’
रानी कहली-‘ जे पहिला ब्राह्मण देवता जे कहतारन-”जे राजा पुछिहन त का कहब?“ ई बात अयोध्या कांड में जवना समय समुंतजी रामजी के बन में पहुँचा के लवटलन हा। तबके सुमन्त जी के पाठ ह! दोसरा ब्राह्मण देवता पाठ जे करऽतारन ”तेरी गति से मेरी गति“-ई बात किष्किन्धा काण्ड के रामजी के सुग्रीव जी से कहलन हाँ। दूनो आदमी हमनी के एक हालत बा।