जनकपुर के दुकानदार राम-लछुमन से
प्रसंग:
नगर-भ्रमण के क्रम में राम-लक्ष्मण का रूप देखकर मिथिला के दुकानदार अपनी चीजें उन्हें दिखा रहे हैं और उन्हें उधार लेने की बात करते हैं।
धोती, पैजामा, पैताबा रंग तरह-तरह, कुर्त्ता, सलूका अंग जोग ही बनाई है।
जामा छकलिया, कमीज, आसकोट जड़ीदार, ढाका का चादर में झालर लगाई है।
छाता अलबाता, जनाता जब परत बूँद, टोपी लखनउआ बेसकीमत मोलाई है।
कहत ‘भिखारी’ मोको दीजे न दाम नाथ! लीजे उधार जवन बस्तु मन भाई है।