भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राम-लीला गान / 20 / भिखारी ठाकुर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:11, 2 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भिखारी ठाकुर |अनुवादक= |संग्रह=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
प्रसंग:
श्रीराम-चरित्र के विवाह के समय बारात एवं मण्डप आदि की सजावट का वर्णन।
गँइयाँ घेराइल, आइल राम के बरात हे। जनकपुरी में बाटे मंगल गवात हे॥
बाग में समियाना भरल तमुआ कनात हे। चमकत तलवार हाथी घोड़ा हेहनात हे॥
सब केहू करत बाड़े आपुस में बात हे। नाच-घर के रचना केहू से नइखे कहात हे॥
माड़ो में हरिअर-हरिअर मनिन के पात हे। जेहि घर में बास कइली जगत के मात हे॥
कहत ‘भिखारी’ मन बाटे पछतात हे। दुलहा के साथ हम रहितीं दिन-रात हे॥