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राम-लीला गान / 41 / भिखारी ठाकुर

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प्रसंग:

सीताजी की विदाई से आशंकित मिथिला-वासियों की पीड़ा का वर्णन।

बिहने जइहन ए सखिया, दीदी रोअत ससुररिया।टेक।
‘मातु’ कहि-कहि रोवन लागी केहि हेतु देत मोहि त्यागी
हम करम के परम अभागी खमा खम खम खम खम दुअरा पर लागी बजरिया। बिहने...
धनि भउजी के बलिहारी डोलिया में धकेलनहारी
तब घर से दिहें निकारी ढर ढर ढर ढर आँसू गिरइहन नजरिया। बिहने...
हे बिप्र पुरोहित सुजाना क्यों जतरा के दिन बताना
ठाढ़े कहि-कहि कर पछिताना थरा थर थर थर देह में उठी थरा थरिया। बिहने...
फजीरे चली जाइ गीत गावत।
भिखारी नाई झमा झमा झम झम कान्ह पर उठी सवरीया बिहने...
केहु नाई झमा झमा झम झम कान्ह पर उठी सवरीया बिहने...
केहु कोटिनों करी उपाई कसहू।