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भजन-कीर्तन: कृष्ण / 17 / भिखारी ठाकुर

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प्रसंग:

कृष्ण के दूत बनकर उधो ब्रज आते हैं और गोपियों में उनका संवाद होता है। उसी संवाद की बानगी यहाँ है।

गीत

उधो जी ज्ञानी सुजानी हई जानतानी।
हमें मत कहींह योग ज्ञाप करे के।
योगी जाप जानेले जंगल में योगी।
हमनी के का जानेयोगी घर बार के।
कुबरी के संग रहतारन।
कही दीह ज्ञान सब कुबर में भरे के
नान्हे के जोर उलबार हवे जानतानी
मठा ना बाचत रहे घरे के
कहत भिखारी सुनी उधो जी
हमनी क वाटै बिरह में जरे के।

करेजवा में लागल बा कुबीर के तीर।
कर धरी धनुष कृष्ण मूरती के, हो गइली बाड़ा गोबीर।
जहर घोर मुस्कान मोहन के, भींजल बा सकल सरीर। करेजवाः॥
जा उधो अतिने सुधि कहीहऽ, तनीको सहात नइखे पीर।
कहत ‘भिखारी’ बिहारी ना अइलन, फूट गइल तकदीर॥ करेजवाः॥

गाना

कब दरशानावा देव नन्दलाल।
जब तूं बइल बिदेशवा भेजल ना एको संदेशवा,
बिसरेना घुंघुर-घुंघुर बाल॥टेक॥
सुतल रहलीं भावानावा रतिया में देखली सपानवा,
चिहुकी के पिटीला दिवाल॥टेक॥
नइखे काम रुपेया के दरशन देद चुपे आके,
दरशव ला मानावा बेहाल॥टेक॥
कहत भिखारी दास दियरा में घर ह खास
सांवली सुरतिया भइले काल॥टेक॥