भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भजन-कीर्तन: कृष्ण / 22 / भिखारी ठाकुर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:00, 3 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भिखारी ठाकुर |अनुवादक= |संग्रह=भज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
प्रसंग: ‘राधेश्याम’ नाम जपाने का माहात्म्य बतलाते हुए जपने का परामर्श।
सीताराम राधेश्याम कहऽ हंसा॥टेक॥
सीताराम राधेश्याम कहऽ हंसा। तब छूटि जइहन भव जाल शंसा॥
सीताराम राधेश्याम कहऽ हंसा। कहि-कहि के हो जा परमहंसा॥
सीताराम राधेश्याम कहऽ हंसा। जेहि के जप गइलन रावण-कंसा॥
सीताराम राधेश्याम कहऽ हंसा। कहत ‘भिखारी’ नाई वंसा॥