भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोई ऐसा जहाँ बताओ तुम / शक्ति बारैठ

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:37, 6 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शक्ति बारैठ |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उदय हुआ है, जहाँ अंधेरा
वहाँ की बातें लाओ तुम
पोशाकों के जिस्म ओढ़कर
काली मल्हारें गाओ तुम।
जन्मा ना हो अब तक राजा
ना कोई पीर हो रंक, महाजन हो
देह की राख़ नगरभर डोले
वो आग ढूँढ़कर लाओ तुम।
मस्ताने जोगी के मस्तक पर
कोई, चिन्ह नया ढाला हो
नए भेश में नया देवता
और पीठ के पीछे भाला हो,
करतब जहाँ पर दिखे मौज के
भूखे के हाथ निवाला हो
पांवो में,बन्दर जेसे मुँह वालों के
घुँघरू जेसी माला हो,
हो नगरवधुएं राज महल में
पंडित का मुह काला हो
सात सिंधु के अष्ठ घाट हो
फिर गंगा से पाला हो,
दूर रात जब सूरज निकले
उसके पार शिवाला हो।