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ख़ामोशी से उतर जानें दे / शक्ति बारैठ

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इन बेबस क़रीबी अलगाव रातों को ख़ामोशी से उतर जाने दे
शोख़ के जख्म गहरे हैं अभी कुछ घाव और भर जाने दे
यूँ ना पूछ मेरे हमराह किस किस ने फ़रेब किया मुझसे
कुछ अपने ही सड़कों पर उतर आये है उन्हें लौट कर घर जाने दे


आँसू मेरे वजूद-ऐ-मंजिलों का पता देंगे जरा गौर से सुनना
रात जो घहरा कर आई उतर गई, जरा इन बादलों को भी मर जाने दे
मेरे सितारे गर्त में है और गर्त में है मजिलें मंजर कुछ खुमारियां भी
शाम-ऐ-तन्हाई बीत गई है, बेपरवाह रात के बाद की सहर आने दे


में चला रेगिस्ता उजाड़ था, बाद में उजड़ा कुछ मुझे उजाड़ कर उजड़े
ये गहरे कूवे ये गहरी नदियाँ ये अथाह समन्दर बस इनसे तर जाने दे
माहौल ने कम आवारगी के सबब ने सिखाया उन्हें की मुझे ख़ामोश रखें
मुझे चुपचाप कहीं महबूब-ऐ-दामन से बिछे इन पत्तों पे पसर जाने दे।