भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तन्हाई / रचना दीक्षित

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:29, 8 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रचना दीक्षित |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कभी फुर्सत में देखती हूँ
अपने घर से
पीछे वाले घर की
एक विधवा दीवार
तनहा
अधमरा पलस्तर
दरकिनार हो चुका उससे
शांत, उदास, मायूस
अपने साथ जुड़े घर की तरह
मिलने जुलने वालों में,
दुख बाँटने वालों में
बची है तो बस
एक हवा और धूप
देखती हूँ
अचानक बरसात के बाद
घर का तो पता नहीं
पर दीवार बहुत खुश है
नए मेहमान जो आये हैं
कुछ नन्ही पीपल की कोपलें,
नन्ही मखमली काई
और फिर
उनसे मिलने वाले नए आगंतुक
तितली, चींटीं, कीड़े, मकोड़े,
कुछ उनके अतिथि
गौरय्या, कबूतर
और न जाने कौन कौन
खूब चहल पहल है
घर का तो पता नहीं
पर हाँ! दीवार बहुत खुश है
सोचती हूँ
पर कितने दिन