भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक दिन / आरती तिवारी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:46, 15 नवम्बर 2017 का अवतरण (Sharda suman ने एक दिन / आरती वर्मा पृष्ठ एक दिन / आरती तिवारी पर स्थानांतरित किया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उन्होंने कहा बड़ी हो रही है
तुम्हारी लड़की
उसे सलवार कमीज़ पहनना सिखाओ
ढंग से दुपट्टा ओढ़े
कोयल सी न कूके
हंसे न ज़ोर से बात बेबात
नज़रें नीची रखकर चले
हटा लो लड़कों के स्कूल से
बहुत पढ़ ली
कामकाज में माँ का हाथ बटाये

लड़की चुप रही
नही कही मन की बात
माँ बाप को चुभी
कील सी
दीवार बन सहती रही
कील होने का दर्द

प्यार की बरबादियाँ
समय के धरातल पर
समानान्तर रेखाओंं सी
खिची रहीं
नाटक का उपसंहार जाने बिना
खापों के थोपे नियमो का वहिष्कार कर
घर से भाग ही गई एक दिन