यादों की खिड़की से
सर्र से आकर
हवा ने खोल दिए कुछ वर्क़
अंजुरी भर पंखुरियों में
थोड़े से तुम हो
थोड़ी सी मैं हूँ
वो सर्द ठिठुरन
मुट्ठी भर धूप भर लायी जो किवाड़ों की ओट से
आँख भर देख जी लिए वो लम्हे जिनमें थोड़े से तुम हो
थोड़ी सी मैं हूँ
गहराती शाम में
लम्बी होती वे परछाइयाँ
एक-दूजे को छू जाने को आतुर
कई प्रकाश-वर्ष दूरियों के बावजूद
उन परछाईंयों को
एक-दूजे के साथ जीते
पकड़े चुप्पी का एक सिरा
जिनमें थोड़े से तुम हो
थोड़ी सी मैं हूँ
तस्वीर के दोहरे फ्रेम में से झांकते
दोनों के अक़्स
जिनमें थोड़े से तुम हो
थोड़ी सी मैं हूँ
मोरपंख के नीले गहरे रंग में
एक नाम में तुम हो
एक नाम में मैं हूँ
मज़बूरियों के जंगल में
पहरों की बावड़ी पे
लहरों की हलचल में
थोड़े से तुम हो,थोड़ी सी मैं हूँ