भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जाने वालों से राब्ता रखना / निदा फ़ाज़ली
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:18, 24 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निदा फ़ाज़ली }} जाने वालों से राब्ता रखना दोस्तो रस्म-...)
जाने वालों से राब्ता रखना
दोस्तो रस्म-ए-फातिहा रखना
घर की तामीर चाहे जैसी हो
इसमें रोने की कुछ जगह रखना
मस्जिदें हैं नमाजियों के लिए
अपने घर में कहीं खुदा रखना
जिस्म में फैलने लगा है शहर
अपनी तन्हाईयाँ बचा रखना
उमर करने को है पचास को पार
कौन है किस जगह पता रखना