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कभी-कभी / विवेक चतुर्वेदी
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कभी-कभी
कितना लुभाता है,
कुछ भी ना होना
बैठना...
तो बस बैठे हो जाना
सरकना सरकंडों को छूकर हवाओं का
बस सुनना
कुछ भी न गुनना
कभी-कभी...