Last modified on 27 नवम्बर 2017, at 13:54

वो चाँद भी लो हँस पड़ा / आलोक यादव

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:54, 27 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आलोक यादव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वो चाँद भी लो हँस पड़ा
धवल हुई निशा-निशा

हवा में घुल रही हँसी
हँसा गगन, हँसी धरा

खिले सुमन, खिला चमन
महक - महक उठी हवा

सुराहियाँ छलक उठीं
नयन जो हँस दिए ज़रा

हँसी तुम्हारी देख कर
बिहँस उठी दिशा-दिशा

पुकारता है कौन ये
इधर तो आ, इधर तो आ

वो पत्र अब भी पास है
मुड़ा- तुड़ा, कटा - फटा

भुला दिया है प्यार में
सुना-गुना, लिखा-पढ़ा

न फ़ासला था फ़ासला
वो जब हमारे साथ था