भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कितना प्यार / इंदुशेखर तत्पुरुष

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:49, 3 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इंदुशेखर तत्पुरुष |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

झुलस वह जाए जो
आ जाए तुम्हारी आग बरसाती
लपटों की चपेट में
ऐसा तुम्हारा रूप प्रचण्ड
पलभर में कैसा बदल जाता
बादल के आते ही।
वह जब छा जाता घटाटोप
कितना शीतल हो आता तुम्हारा स्पर्श
ओ हवा!
तुम कितना प्यार
करती हो बादल को।