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हम बहुत कायल हुए हैं / मनोज जैन 'मधुर'

हम बहुत कायल हुए हैं
आपके व्यवहार के।
आँख को सपने दिखाए
प्यास को पानी ।
इस तरह होती रही
हर रोज़ मनमानी।
शब्द भर टपका दिए दो
होंठ से आभार के।

लाज को घूँघट दिखाया
पेट को थाली।
आप तो भरते रहे पर
हम हुए ख़ाली।
पीठ पर कब तक सहें
चाबुक समय की मार के।

पाँव को बाधा दिखाई
हाथ को डण्डे।
दे दिए बैनर किसी ने
दे दिए झण्डे।
हो सके कब जीत के हम
हो सके कब हार के।