भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बूचड़खाना / आनंद खत्री

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:41, 6 दिसम्बर 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे कसाई को मालूम है
जिस्म का कौन सा हिस्सा
किस काम का है।

और क्यूँ न हो
कटे हुऐ बदन को
बोटियों में बदलना
खाल को करीने से उतारना
अंतड़ियों को बाहर फेंकना
गुर्दे-कलेजी पे लगी चर्बी को
छीलना, साफ़ करना
रान और चाप की नज़ाकत
वो खूब समझता है।

मेरा रक्त-रेज़-कसाई
इस पेशे में, एक हुनर से
कला में पहचाना गया है।
इसी से मेरे क़ातिलकी
दुकान चलती है।

किसे पता था
खुले खलिहानों और
नम हरी दूब
पेड़ों की छाओं में
कूदें लगाते ये साल,
किसी दगा से
मेरे खरीदार के नाज़ के लिए
कभी ईद, होली, दिवाली को
कुछ गोश्त की बोटियों में
पहचानी जाएंगी।